Saturday, February 24, 2018

दशनाम गोस्वामियों की मढ़ियां और ऋषि गोत्र
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देश-विदेश से मेरे पास रोज़ अनेक संदेश, शंकाएं और प्रश्न आते हैं कि हमारी कौन सी मढ़ी है ? हमारा कौनसा गोत्र है ? नयी खोज के आधार पर मैं इनका उत्तर दे रहा हूँ :--
दशनाम गोस्वामियों की दस शाखाएं हैं--वन, अरण्य, तीर्थ, आश्रम, गिरि, पर्वत, सागर , सरस्वती, भारती ,पुरी। मढ़ी को उप शाखा कहते हैं। कालांतर में वन,भारती, पुरी और गिरि ने अपनी 52 उप शाखाएं ( मढ़ियां ) स्थापित कर लीं और वे शस्त्र धारण करके धर्म सैनिक बन गये और हिंदू धर्म को बचाने के लिए रणक्षेत्र में कूद गये जबकि अरण्य, तीर्थ, आश्रम,पर्वत, सागर और सरस्वती ने शास्त्रों का सहारा लेकर धर्म प्रचार किया और इन्होंने अपनी उप शाखाएं ( मढ़ियां )स्थापित नहीं कीं। इसप्रकार दशनाम गोस्वामियों की दो धाराएं चल पड़ीं--शास्त्रधारी और शस्त्रधारी। अरण्य का ऋषि गोत्र मुद्गल, तीर्थ का अत्रि, आश्रम का जमदग्नि, पर्वत का भारद्वाज, सागर का भारद्वाज और सरस्वती का ऋषि गोत्र हरित है। वन की 4, भारती की 4, पुरी की सोलह 16 और गिरि की 28 मढ़ियां ( उप शाखाएं ) हैं अर्थात कुल 52 मढ़ियां ( उप शाखाएं ) हैं। 52 मढ़ियों के नाम और  ऋषि गोत्र इस प्रकार हैं  :-
मढ़ी का नाम             ऋषि गोत्र
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              वन शाखा
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1-श्याम सुंदर वन         जमदग्नि
2-गंगा वन                    गौतम
3-गोपाल वन                अत्रि
4-भगवंत वन           विष्णुवृद्ध
                भारती शाखा
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5-नृसिंह भारती              अत्रि
6-मन मुकुंद भारती          अत्रि
7-विश्वम्भर भारती          अत्रि
8-मन महेश भारती          अत्रि
                पुरी शाखा
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9-केवल पुरी                 जमदग्नि
10-अचिंत्य पुरी            जमदग्नि
11-मथुरा पुरी               जमदग्नि
12-माधव पुरी              जमदग्नि
13-जगदेव पुरी             उपमन्यु
14-हृषिकेश पुरी           उपमन्यु
15-रामचंद्र पुरी             उपमन्यु
16-व्यंकट पुरी              उपमन्यु
17-श्याम सुंदर पुरी        शरद्वन
18-जड़भरत पुरी           शरद्वन
19-गंगादरियाव पुरी       शरद्वन
20-सिंहदरियाव पुरी       शरद्वन
21-भगवान पुरी            वशिष्ठ
22-भगवंत पुरी             वशिष्ठ
23-सहज पुरी               वशिष्ठ
24-मेघनाथ पुरी            वशिष्ठ
               गिरि शाखा
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25-ऋद्धिनाथी             जमदग्नि
26-संजानाथी              जमदग्नि
27-दुर्गानाथी               जमदग्नि
28-ब्रह्माण्डनाथी         जमदग्नि
29-बैकुण्ठनाथी           जमदग्नि
30-ब्रह्मनाथी               भारद्वाज
31-श्रयभृंगनाथी           भारद्वाज
32-ज्ञाननाथी              भारद्वाज
33-माननाथी               भारद्वाज
34-बलभद्रनाथी           भारद्वाज
35-अपारनाथी             भारद्वाज
36-सागरबोदला           कुण्डिन
37-पाटम्बरनाथी           हरित
38-ओंकारी                  कश्यप
39-सिंह श्याम यति      अगस्तय
40-चंदननाथी              वशिष्ठ
41-नागेंद्रनाथी              उपमन्यु
42-सहजनाथी             उपमन्यु
43-मोहननाथी             उपमन्यु
44-बालेंद्रनाथी             उपमन्यु
45-रुद्रनाथी                 उपमन्यु
46-कुमुस्थनाथी            उपमन्यु
47-परमानंदी                उपमन्यु
48-सागरनाथी              उपमन्यु
49-बाघनाथी                उपमन्यु
50-रतननाथी                अत्रि
51-रामदत्ती                  वत्स
52-पाटम्बरी                हरित
विशेष :- मढ़ियों के नामों और ऋषि गोत्रों के बारे में विद्वानों में मतैक्य का अभाव है। अतः अभी और अधिक खोजबीन की ज़रूरत है।

Friday, February 16, 2018

दशनाम गोस्वामियों में समाधि संस्कार और प्रथा
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सृष्टि के प्रारंभ में कौन सी अंत्येष्टि क्रिया अपनायी जाती थी कहना मुश्किल है लेकिन बाद में चार प्रकार की देखने को मिलीं :-1- दाह संस्कार ( जलाना ) ,2- मृतिका दाह ( भूमि में गाड़ना ), 3- जल प्रवाह ( जल में बहा देना ), 4-पवन दाह ( जंगल में रख देना )। अपने-अपने हिसाब से लोग इन क्रियाओं को महान बताते हैं। गोस्वामियों को प्राचीनकाल में शैव संन्यासी माना जाता था जिनके लिए समाधि संस्कार को श्रेष्ठ माना गया था। संन्यासी लोग प्राणायाम करते थे और श्वांस क्रिया द्वारा शरीर को छोड़कर समाधि ले लिया करते थे। समाधि दो प्रकार की होती है :- 1- भूसमाधि और 2- जल समाधि। समाधि संस्कार और दाह संस्कार दोनों ही प्राचीन हैं। ऋग्वेद प्राचीनतम ग्रंथ है जिसके सातवें और दसवें मंडलों में दोनों संस्कारों का वर्णन है। दशनाम गोस्वामियों का सम्बंध भारत की प्राचीनतम सभ्यता ( सिंधु घाटी सभ्यता ) से रहा है जिसमें समाधि  संस्कार के सबूत मिले हैं। भूसमाधि और जलसमाधि भी दो प्रकार की हैं :- 1-मृतक समाधि और 2-जीवित समाधि। मृतक समाधि मरने के बाद ली जाती है जबकि जीवित समाधि जीवित रहते हुए अपनी इच्छा से ली जाती है। जीवित समाधियों के अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं। कुछ लोग इतने पहुंचे हुए होते थे कि वे अपनी मृत्यु की तिथि पहले ही बता देते थे। मुस्लिमकाल में इस प्रथा ने फिर से ज़ोर पकड़ा। मुस्लिमकाल में मुसलमानों का दबदबा था। मुसलमान लोग अपने मुर्दे कहीं भी गाड़ देते थे और फिर उस ज़मीन को अपना बताने लगते थे। पुलिस और अदालतों में मुसलमानों की ही सुनवाई होती थी और हिंदू लोग हाथ मलते रह जाते थे। हद तो तब हो गई जब उन्होंने हिंदू मंदिरों और समाधियों के साथ भी ऐसा ही करना शुरू कर दिया।दशनाम गोस्वामियों ने अपने मृतकों की समाधियाँ अपने मठों और मंदिरों में बनानी शुरू कर दीं ताकि विवाद होने पर अपने सबूत प्रस्तुत कर सकें। यह तरकीब बड़ी कामयाब रही। अपनी समाधियों को दिखा-दिखाकर अपने धर्मस्थल बचाये गये। इससे सिद्ध होता है कि हमारे पूर्वज बहुत समझदार थे।गोस्वामियों के दो प्रकार हैं :-1-विरक्त गोस्वामी और 2-गृहस्थ गोस्वामी। केवल विरक्तों के लिए समाधि संस्कार मान्य है परंतु कुछ गृहस्थ गोस्वामी भी इस प्रथा को वरीयता देते हैं क्योंकि उनके पूर्वज कभी विरक्त रहे होंगे। गांवों में समाधि संस्कार का बोलबाला है परंतु शहरों में यह प्रथा दम तोड़ चुकी है। राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश में यह प्रथा जारी है लेकिन दिल्ली जैसे राज्यों और शहरों में इसके दर्शन नहीं होते। गोस्वामी समाज के साथ-साथ नाथ समाज का भी यही हाल है। लेकिन अब श्मशान के लिए भूमि सरकार से प्राप्त करने की मांग उठी है। राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में गोस्वामियों ने सरकार के सामने यह ज़ोरों से उठाई है, साथ ही मठ-मंदिरों की भूमि को पुजारियों के नाम करने के लिए भी संघर्ष चल रहा है।
समाधि संस्कार के बहुत से नियम हैं जिनका पालन करना आवश्यक है। अंतिम संस्कार में कई पड़ाव आते हैं और हर पड़ाव के मंत्र हैं लेकिन यहां सभी का वर्णन सम्भव नहीं है। इसलिए संक्षेप में बताता हूं। प्राणी जब अंतिम क्षणों से गुज़र रहा होता है तब गायत्री मंत्र सुनाया जाता है और गीता का पाठ किया जाता है। प्राण छोड़ देने के बाद पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके कमलासन पर बिठाते हैं। फिर स्नान कराते हुए मंत्रोच्चार करते हैं।फिर वस्त्र धारण कराते हैं और मंत्र पढ़ते हैं। डोल अथवा डोली में बिठाकर बाहर ले जाते हैं। ज़मीन खोदने का मंत्र बोला जाता है।समाधि में रखकर फिर मंत्र । रामरस ( नमक ) डालने का मंत्र। मिट्टी डालने का मंत्र। पावड़ी मंत्र ,कुण्डा जलाने का मंत्र, समाधि पूर्ण होने पर समाधि मंत्र, शिव गायत्री,गणेश गायत्री,विष्णु गायत्री, महामंत्र,मानसपूजा, श्रीफल तोड़ने का मंत्र। सोलह दिन बाद भण्डारा होता है।

Thursday, February 15, 2018

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