दशनाम गोस्वामियों में समाधि संस्कार और प्रथा
----------------------------------------
सृष्टि के प्रारंभ में कौन सी अंत्येष्टि क्रिया अपनायी जाती थी कहना मुश्किल है लेकिन बाद में चार प्रकार की देखने को मिलीं :-1- दाह संस्कार ( जलाना ) ,2- मृतिका दाह ( भूमि में गाड़ना ), 3- जल प्रवाह ( जल में बहा देना ), 4-पवन दाह ( जंगल में रख देना )। अपने-अपने हिसाब से लोग इन क्रियाओं को महान बताते हैं। गोस्वामियों को प्राचीनकाल में शैव संन्यासी माना जाता था जिनके लिए समाधि संस्कार को श्रेष्ठ माना गया था। संन्यासी लोग प्राणायाम करते थे और श्वांस क्रिया द्वारा शरीर को छोड़कर समाधि ले लिया करते थे। समाधि दो प्रकार की होती है :- 1- भूसमाधि और 2- जल समाधि। समाधि संस्कार और दाह संस्कार दोनों ही प्राचीन हैं। ऋग्वेद प्राचीनतम ग्रंथ है जिसके सातवें और दसवें मंडलों में दोनों संस्कारों का वर्णन है। दशनाम गोस्वामियों का सम्बंध भारत की प्राचीनतम सभ्यता ( सिंधु घाटी सभ्यता ) से रहा है जिसमें समाधि संस्कार के सबूत मिले हैं। भूसमाधि और जलसमाधि भी दो प्रकार की हैं :- 1-मृतक समाधि और 2-जीवित समाधि। मृतक समाधि मरने के बाद ली जाती है जबकि जीवित समाधि जीवित रहते हुए अपनी इच्छा से ली जाती है। जीवित समाधियों के अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं। कुछ लोग इतने पहुंचे हुए होते थे कि वे अपनी मृत्यु की तिथि पहले ही बता देते थे। मुस्लिमकाल में इस प्रथा ने फिर से ज़ोर पकड़ा। मुस्लिमकाल में मुसलमानों का दबदबा था। मुसलमान लोग अपने मुर्दे कहीं भी गाड़ देते थे और फिर उस ज़मीन को अपना बताने लगते थे। पुलिस और अदालतों में मुसलमानों की ही सुनवाई होती थी और हिंदू लोग हाथ मलते रह जाते थे। हद तो तब हो गई जब उन्होंने हिंदू मंदिरों और समाधियों के साथ भी ऐसा ही करना शुरू कर दिया।दशनाम गोस्वामियों ने अपने मृतकों की समाधियाँ अपने मठों और मंदिरों में बनानी शुरू कर दीं ताकि विवाद होने पर अपने सबूत प्रस्तुत कर सकें। यह तरकीब बड़ी कामयाब रही। अपनी समाधियों को दिखा-दिखाकर अपने धर्मस्थल बचाये गये। इससे सिद्ध होता है कि हमारे पूर्वज बहुत समझदार थे।गोस्वामियों के दो प्रकार हैं :-1-विरक्त गोस्वामी और 2-गृहस्थ गोस्वामी। केवल विरक्तों के लिए समाधि संस्कार मान्य है परंतु कुछ गृहस्थ गोस्वामी भी इस प्रथा को वरीयता देते हैं क्योंकि उनके पूर्वज कभी विरक्त रहे होंगे। गांवों में समाधि संस्कार का बोलबाला है परंतु शहरों में यह प्रथा दम तोड़ चुकी है। राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश में यह प्रथा जारी है लेकिन दिल्ली जैसे राज्यों और शहरों में इसके दर्शन नहीं होते। गोस्वामी समाज के साथ-साथ नाथ समाज का भी यही हाल है। लेकिन अब श्मशान के लिए भूमि सरकार से प्राप्त करने की मांग उठी है। राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में गोस्वामियों ने सरकार के सामने यह ज़ोरों से उठाई है, साथ ही मठ-मंदिरों की भूमि को पुजारियों के नाम करने के लिए भी संघर्ष चल रहा है।
समाधि संस्कार के बहुत से नियम हैं जिनका पालन करना आवश्यक है। अंतिम संस्कार में कई पड़ाव आते हैं और हर पड़ाव के मंत्र हैं लेकिन यहां सभी का वर्णन सम्भव नहीं है। इसलिए संक्षेप में बताता हूं। प्राणी जब अंतिम क्षणों से गुज़र रहा होता है तब गायत्री मंत्र सुनाया जाता है और गीता का पाठ किया जाता है। प्राण छोड़ देने के बाद पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके कमलासन पर बिठाते हैं। फिर स्नान कराते हुए मंत्रोच्चार करते हैं।फिर वस्त्र धारण कराते हैं और मंत्र पढ़ते हैं। डोल अथवा डोली में बिठाकर बाहर ले जाते हैं। ज़मीन खोदने का मंत्र बोला जाता है।समाधि में रखकर फिर मंत्र । रामरस ( नमक ) डालने का मंत्र। मिट्टी डालने का मंत्र। पावड़ी मंत्र ,कुण्डा जलाने का मंत्र, समाधि पूर्ण होने पर समाधि मंत्र, शिव गायत्री,गणेश गायत्री,विष्णु गायत्री, महामंत्र,मानसपूजा, श्रीफल तोड़ने का मंत्र। सोलह दिन बाद भण्डारा होता है।
----------------------------------------
सृष्टि के प्रारंभ में कौन सी अंत्येष्टि क्रिया अपनायी जाती थी कहना मुश्किल है लेकिन बाद में चार प्रकार की देखने को मिलीं :-1- दाह संस्कार ( जलाना ) ,2- मृतिका दाह ( भूमि में गाड़ना ), 3- जल प्रवाह ( जल में बहा देना ), 4-पवन दाह ( जंगल में रख देना )। अपने-अपने हिसाब से लोग इन क्रियाओं को महान बताते हैं। गोस्वामियों को प्राचीनकाल में शैव संन्यासी माना जाता था जिनके लिए समाधि संस्कार को श्रेष्ठ माना गया था। संन्यासी लोग प्राणायाम करते थे और श्वांस क्रिया द्वारा शरीर को छोड़कर समाधि ले लिया करते थे। समाधि दो प्रकार की होती है :- 1- भूसमाधि और 2- जल समाधि। समाधि संस्कार और दाह संस्कार दोनों ही प्राचीन हैं। ऋग्वेद प्राचीनतम ग्रंथ है जिसके सातवें और दसवें मंडलों में दोनों संस्कारों का वर्णन है। दशनाम गोस्वामियों का सम्बंध भारत की प्राचीनतम सभ्यता ( सिंधु घाटी सभ्यता ) से रहा है जिसमें समाधि संस्कार के सबूत मिले हैं। भूसमाधि और जलसमाधि भी दो प्रकार की हैं :- 1-मृतक समाधि और 2-जीवित समाधि। मृतक समाधि मरने के बाद ली जाती है जबकि जीवित समाधि जीवित रहते हुए अपनी इच्छा से ली जाती है। जीवित समाधियों के अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं। कुछ लोग इतने पहुंचे हुए होते थे कि वे अपनी मृत्यु की तिथि पहले ही बता देते थे। मुस्लिमकाल में इस प्रथा ने फिर से ज़ोर पकड़ा। मुस्लिमकाल में मुसलमानों का दबदबा था। मुसलमान लोग अपने मुर्दे कहीं भी गाड़ देते थे और फिर उस ज़मीन को अपना बताने लगते थे। पुलिस और अदालतों में मुसलमानों की ही सुनवाई होती थी और हिंदू लोग हाथ मलते रह जाते थे। हद तो तब हो गई जब उन्होंने हिंदू मंदिरों और समाधियों के साथ भी ऐसा ही करना शुरू कर दिया।दशनाम गोस्वामियों ने अपने मृतकों की समाधियाँ अपने मठों और मंदिरों में बनानी शुरू कर दीं ताकि विवाद होने पर अपने सबूत प्रस्तुत कर सकें। यह तरकीब बड़ी कामयाब रही। अपनी समाधियों को दिखा-दिखाकर अपने धर्मस्थल बचाये गये। इससे सिद्ध होता है कि हमारे पूर्वज बहुत समझदार थे।गोस्वामियों के दो प्रकार हैं :-1-विरक्त गोस्वामी और 2-गृहस्थ गोस्वामी। केवल विरक्तों के लिए समाधि संस्कार मान्य है परंतु कुछ गृहस्थ गोस्वामी भी इस प्रथा को वरीयता देते हैं क्योंकि उनके पूर्वज कभी विरक्त रहे होंगे। गांवों में समाधि संस्कार का बोलबाला है परंतु शहरों में यह प्रथा दम तोड़ चुकी है। राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश में यह प्रथा जारी है लेकिन दिल्ली जैसे राज्यों और शहरों में इसके दर्शन नहीं होते। गोस्वामी समाज के साथ-साथ नाथ समाज का भी यही हाल है। लेकिन अब श्मशान के लिए भूमि सरकार से प्राप्त करने की मांग उठी है। राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में गोस्वामियों ने सरकार के सामने यह ज़ोरों से उठाई है, साथ ही मठ-मंदिरों की भूमि को पुजारियों के नाम करने के लिए भी संघर्ष चल रहा है।
समाधि संस्कार के बहुत से नियम हैं जिनका पालन करना आवश्यक है। अंतिम संस्कार में कई पड़ाव आते हैं और हर पड़ाव के मंत्र हैं लेकिन यहां सभी का वर्णन सम्भव नहीं है। इसलिए संक्षेप में बताता हूं। प्राणी जब अंतिम क्षणों से गुज़र रहा होता है तब गायत्री मंत्र सुनाया जाता है और गीता का पाठ किया जाता है। प्राण छोड़ देने के बाद पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके कमलासन पर बिठाते हैं। फिर स्नान कराते हुए मंत्रोच्चार करते हैं।फिर वस्त्र धारण कराते हैं और मंत्र पढ़ते हैं। डोल अथवा डोली में बिठाकर बाहर ले जाते हैं। ज़मीन खोदने का मंत्र बोला जाता है।समाधि में रखकर फिर मंत्र । रामरस ( नमक ) डालने का मंत्र। मिट्टी डालने का मंत्र। पावड़ी मंत्र ,कुण्डा जलाने का मंत्र, समाधि पूर्ण होने पर समाधि मंत्र, शिव गायत्री,गणेश गायत्री,विष्णु गायत्री, महामंत्र,मानसपूजा, श्रीफल तोड़ने का मंत्र। सोलह दिन बाद भण्डारा होता है।
बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी
ReplyDelete